साइनसाइटिस क्या होता है, इसके मुख्य लक्षण, कारण और उपचार के लिए कौन-कौन विकल्प मौजूद है ?
साइनसाइटिस आपके साइनस यानी माथे, गले और नाक में हवा भरे स्थानों के ऊतकों में उत्पन्न सूजन होता है | इससे चेहरे में दर्द, नाक का बंद होना या फिर बहना, तेज़ बुखार के लक्षण भी दिखाई दे सकते है | यह आमतौर पर आम सर्दी की तरह होता है, लेकिन अन्य संक्रमण जैसे की बैक्टीरिया, कवक और एलर्जी की वजह से भी साइनसाइटिस हो सकता है | आइये है साइनसाइटिस के बारे में विस्तार से :-
साइनसाइटिस क्या है ?
आयुष आयुर्वेद एंड पंचकर्म सेंटर के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर गौहार वात्स्यायन ने यह बताया की साइनसाइटिस जिसे आयुर्वेद में पनीस के नाम से वर्णन किया गया है, यह आमतौर पर बैक्टीरिया संक्रमण के कारण उत्पन्न होता है | इसके अलावा किसी भी तरह का वायरस या फंगस के संक्रमण के कारण से भी साइनसाइटिस हो सकता है | इस स्थिति में साइनस में बलगम जमा होने लग जाता है और सूजन होने लग जाती है |
जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली काफी कमज़ोर होती है, उन लोगों में साइनस बैक्टीरिया या फिर फंगस संक्रमण से प्रभावित होने की संभावना सबसे अधिक होती है | यह किसी भी वर्ग और किसी भी लिंग के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है | साइनसाइटिस का समय पर निदान और डॉक्टर से परामर्श करना बेहद ज़रूरी होता है, जिसमें आयुर्वेदिक उपचार आपकी पूर्ण रूप से मदद कर सकता है | आइये जानते है साइनसाइटिस के मुख्य लक्षण और कारण क्या है :-
साइनसाइटिस होने के मुख्य लक्षण क्या है ?
साइनसाइटिस या साइनस संक्रमण होने के कई लक्षण हो सकता है, जिनमें शामिल है :-
- नाक से पीला या फिर हरा मवाद का बाहर निकलना
- नाक का बंद होना
- चेहरे, सिर या आंखों के आसपास दबाव, भारीपन या फिर दर्द का एहसास होना
- गंध या फिर स्वाद में कमी आना
- बदबूदार सांस आना
- बुखार होना
- कान में दर्द का अनुभव होना
- थकान महसूस होना
- दांत में दर्द होना
- गले के पीछे की ओर गाढ़ा बलगम बहने जैसे महसूस होना
साइनसाइटिस होने के मुख्य कारण क्या है ?
साइनसाइटिस या साइनस संक्रमण होने के कई कारण हो सकते है जैसे की
- किसी प्रकार की एलर्जी
- बैक्टीरियल संक्रमण
- साइनस में कण या फिर रासायनिक जलन होना
- कवक या फिर मोल्ड
- धूम्रपान के सेवन से
- प्रदूषित पर्यावरण
- टेढ़ी या फिर मूड़ी हुई नाक का होना
- प्रतिरक्षा प्रणाली का कमज़ोर होना
- नाक में पॉलीप्स का जमा होना आदि |
इससे साइनस में तरल पदार्थ जमा होने लग जाते है, जिसके परिणामस्वरूप इसमें कीटाणु पनपने लग जाते है | इसके अलावा तैलीय, मसालेदार या फिर बहुत गर्म और ठंडे भोजन का एक साथ सेवन करना, असंगत खाद पदार्थ का सेवन शरीर के तीन दोषों यानी वात, पित्त और कफ को नुकसान पहुंचाने का कार्य करते है | जिसकी वजह से साइनस के ऊतकों में रुकावट, सूजन या जलन होने लग जाता है | आयुर्वेद उपचार के माध्यम से साइनस संक्रमण का प्रभावी रूप से इलाज किया जा सकता है | आइये जानते है साइनसाइटिस कितने प्रकार के होते है :-
साइनसाइटिस कितने प्रकार के होते है ?
- तीव्र साइनसाइटिस :- यह साइनस में होने वाला एक संक्रमण होता है, जिसके लक्षण चार सप्ताह या फिर उससे भी अधिक समय तक रह सकता है | यह साइनसाइटिस आमतौर पर सर्दी के वायरस की वजह से उत्पन्न होता है | इसके मुख्य लक्षणों में शामिल है :- भरी हुई नाक का होना, चेहरे में दर्द होना, थकावट महसूस होनी, सुघने में दिक्कत होनी, हरे और पीले रंग का स्त्राव होना, तेज़ बुखार होना आदि |
- उप-तीव्र साइनसाइटिस :- यह संक्रमण आमतौर पर 4 से 12 सप्ताह तक पीड़ित व्यक्ति को परेशान कर सकता है | उप-तीव्र साइनसाइटिस के लक्षण तीव्र साइनसाइटिस जितने ही गंभीर होते है |
- पुरानी साइनसाइटिस :- पुरानी साइनसाइटिस को क्रोनिक साइनसाइटिस भी कहा जाता है, जो साइनस में एक प्रकार का सूजन होता है और यह 12 सप्ताह या फिर उससे भी अधिक समय तक पीड़ित व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है | पुरानी साइनसाइटिस के मुख्य लक्षणों में शामिल है, बलगम वाली खांसी होना, गला खराब होना, सिरदर्द और कान में दर्द होना, गंध का कम होना, बदबूदार सांसे आदि |
- संक्रामक साइनसाइटिस :- यह साइनसाइटिस, साइनस की परत के ऊतकों में सूजन और संक्रमण होने की स्थिति होती है | यह आमतौर पर वायरल या फिर जीवाणु संक्रमण के कारण उत्पन्न होते है | इसके मुख्य लक्षणों में शामिल है :- गंध और स्वाद में कमी होना, सिर और चेहरे में दर्द होना, बदबूदार सांसें, बंद नाक या फिर भारीपन महसूस होना, दांत में दर्द होना, रात में सोने के समय अधिक खांसी होना आदि |
साइनसाइटिस के लिए आयुर्वेदिक उपचार कौन से मौजूद है ?
- नास्य चिकित्सा :- नास्य चिकित्सा को आयुर्वेद में शिरो विरेचन भी कहा जाता है. इस प्रक्रिया में बलगम के स्त्राव को उत्तेजित करने के लिए नाक के माध्यम से जड़ी-बूटियों, तेल और हर्बल पाउडर को डाला जाता है | यह उपचार नाक और साइनस के राह में और उसके ऊतकों के आसपास जमा बलगम को प्रभावी ढंग से घोलने और ढीला करने में सहायक होता है |
- नाक से गर्म भाप लेना :- दिन में दो बार नाक के ज़रिये गर्म भाप लेने से साइनस के मार्ग में बलगम के जमाव को कम करने में मदद मिल सकती है | साइनसाइटिस के उपचार के दौरान भाप में कपूर, मेन्थॉल की एक बूंद को मिलकर, इस मिश्रण का भाप लें |
- हरिद्रा चूर्ण :- यह साइनस में हुए कफ को कम करने में मदद करता है और नाक में जमा तरल पदार्थ को साफ़ करने में सक्षम होता है |
यदि आप में से कोई भी व्यक्ति साइनसाइटिस की समस्या से पीड़ित है और एलॉपथी से इलाज करवाने के बावजूद आपकी स्थिति पर किसी भी प्रकार का सुधार नहीं आ रहा है तो इसमें आयुष आयुर्वेद एंड पंचकर्म सेंटर आपकी पूर्ण रूप से मदद कर सकते है | इस संस्था के सीनियर कंसल्टेंट गौहार वात्स्यायन आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों में स्पेशलिस्ट है, जो आयुर्वेदिक उपचार के माध्यम से इस समस्या को कम करने में आपकी पूर्ण रूप से सहायता कर सकते है | इसलिए परामर्श के लिए आज ही आयुष आयुर्वेद एंड पंचकर्म सेंटर की ऑफिसियल वेबसाइट पर जाएं और अपनी अप्पोइन्मनेट को बुक करें | आप चाहे तो वेबसाइट में मौजूद नंबरों से भी संपर्क कर सकते है |